ईद-उल-अज़हा 2025: क्यों मनाई जाती है बकरीद, कब है तारीख, कुर्बानी का महत्व और इस्लामी परंपराएं

इस्लामिक कैलेंडर के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक, ईद अल-अज़हा, जिसे भारत में बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया भर के मुसलमानों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। यह त्यौहार सिर्फ एक उत्सव मात्र नहीं, बल्कि अल्लाह के प्रति पैगंबर इब्राहिम की अटूट आस्था, आज्ञाकारिता और उनके महान बलिदान की याद दिलाता है। ईद अल-अज़हा 2025 (बकरीद) भी इसी भावना और परंपरा के साथ मनाया जाएगा, जो भाईचारे, दान और समुदाय की एकता का संदेश देगा।

बकरीद 2025: ईद अल-अज़हा की तारीख, कुर्बानी और जानकारी

क्या बकरीद एक सार्वजनिक अवकाश है?

हाँ, बकरीद भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक अवकाश है। इस दिन, आम आबादी के लिए छुट्टी होती है, और स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालय और अधिकांश व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रहते हैं। यह अवकाश मुस्लिम समुदाय को इस पवित्र दिन को पूरे उत्साह और धार्मिक विधि-विधान के साथ मनाने का अवसर प्रदान करता है। दिल्ली की जामा मस्जिद जैसी ऐतिहासिक मस्जिदों से लेकर देश के कोने-कोने में स्थित छोटी-बड़ी मस्जिदों और ईदगाहों में विशेष नमाज़ अदा की जाती है।

भारत में ईद अल-अज़हा (बकरीद) का दृश्य: एक जीवंत अनुभव

भारत, अपनी विविध संस्कृतियों के साथ, 200 मिलियन से अधिक मुसलमानों का घर है। बकरीद के दिन, यह विविधता एक खूबसूरत एकता में बदल जाती है। यदि आप इस दिन किसी भारतीय शहर का दौरा करते हैं, तो आपको लोगों के बड़े समूह अपने बेहतरीन पारंपरिक परिधानों में सजे-धजे, मस्जिदों और ईदगाहों की ओर जाते हुए दिखाई देंगे। हवा में “ईद मुबारक” (ईद की शुभकामनाएँ) की गूंज सुनाई देती है, और चारों ओर उत्सव का माहौल होता है। लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं, गिले-शिकवे भुलाकर प्यार और सद्भावना बांटते हैं। यह दृश्य भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।

ईद अल-अज़हा (बकरीद) कैसे मनाई जाती है? पारंपरिक रीति-रिवाज

ईद अल-अज़हा का उत्सव कई महत्वपूर्ण रीति-रिवाजों और परंपराओं से जुड़ा हुआ है:

खुले में नमाज़ (ईदगाह में प्रार्थना):

दिन की शुरुआत पारंपरिक रूप से ईद की विशेष नमाज़ से होती है। यह नमाज़ आमतौर पर बड़े, खुले मैदानों में अदा की जाती है जिन्हें ‘ईदगाह’ कहा जाता है। बड़ी संख्या में मुस्लिम पुरुष, बच्चे और कभी-कभी महिलाएं भी (समुदाय की परंपराओं के अनुसार) इन सामूहिक प्रार्थनाओं में भाग लेते हैं। यह एकता और समुदाय की भावना का प्रतीक है। ईद अल-अज़हा की नमाज़ का समय स्थानीय चाँद के दिखने और धार्मिक समितियों द्वारा निर्धारित किया जाता है।

लोक उत्सव और मेलों का आयोजन:

विशेष रूप से बड़े मुस्लिम समुदायों वाले शहरों जैसे दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, मुंबई, लखनऊ और भोपाल में, बकरीद एक जीवंत लोक उत्सव का रूप ले लेती है। सड़कों के किनारे, विशेषकर मुस्लिम बहुल इलाकों में, पारंपरिक बकरीद के पकवान और मिठाइयों के स्टॉल सज जाते हैं। परिवार सड़कों पर घूमते हैं, स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेते हैं, और एक-दूसरे के लिए छोटे-छोटे उपहार खरीदते हैं। इस उत्सव का यह पहलू अक्सर सभी धर्मों और पृष्ठभूमियों के लोगों को आकर्षित करता है, जो सांप्रदायिक सद्भाव का एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है।

पैगंबर इब्राहिम का महान बलिदान: त्यौहार का आध्यात्मिक आधार

Eid ul Adha (जिसे बकरीद भी कहा जाता है) इस्लाम का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है। ये त्योहार इस बात की याद में मनाया जाता है कि हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी देने की पूरी तैयारी कर ली थी।

क्यों मनाते हैं ईद उल-अज़हा?

  1. अल्लाह की आज़माइश का इम्तिहान:
    हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जब अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने का इरादा किया, तो अल्लाह ने उनकी नीयत और ईमानदारी को पसंद किया और एक दुम्बा (मेंढा) भेजकर उसे कुर्बानी में बदल दिया। इससे यह सबक मिलता है कि अल्लाह की राह में सब कुछ कुर्बान किया जा सकता है।

  2. ताकि मुसलमान अल्लाह की रहमत और आज़माइश को याद रखें:
    ये दिन अल्लाह के हुक्म की तामील, सब्र और ईमानदारी की मिसाल है।

  3. कुर्बानी के ज़रिये गरीबों की मदद:
    ईद उल-अज़हा पर जो जानवर कुर्बान किया जाता है, उसका गोश्त तीन हिस्सों में बांटा जाता है —

    • एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को

    • दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों को

    • तीसरा हिस्सा अपने लिए

कुर्बानी: त्याग, दान और सामाजिक समरसता

भारत में हर साल बकरीद के मौके पर लाखों बकरों और अन्य जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। यह प्रथा, जो कुछ लोगों को कठोर लग सकती है, वास्तव में व्यक्तिगत त्याग और दान की गहरी अवधारणा पर आधारित है। कुर्बानी का अर्थ सिर्फ जानवर की बलि देना नहीं, बल्कि अपनी सबसे प्रिय चीज़ को अल्लाह की राह में कुर्बान करने की भावना है।

इस्लामिक नियमों के अनुसार, कुर्बानी के मांस को तीन भागों में विभाजित किया जाता है: एक तिहाई हिस्सा परिवार के लिए, एक तिहाई रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए, और एक तिहाई गरीबों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है। भारत जैसे देश में, जहाँ बहुत से लोग नियमित रूप से मांस नहीं खरीद सकते, कुर्बानी यह सुनिश्चित करती है कि इस पवित्र दिन पर कोई भी भूखा न रहे। कई लोग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा जानवर खरीदने और इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए खर्च करते हैं। जो लोग स्वयं कुर्बानी करने में असमर्थ होते हैं, वे अक्सर धर्मार्थ संगठनों को धन दान करते हैं जो उनकी ओर से कुर्बानी करते हैं और मांस को जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं। यह दान और पुण्य का कार्य त्यौहार की मूल भावना को दर्शाता है।

ईद अल-अज़हा (बकरीद) के पारंपरिक व्यंजन: स्वाद का उत्सव

भारत अपनी समृद्ध और विश्व प्रसिद्ध पाक परंपरा के लिए जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ सबसे प्रसिद्ध भारतीय व्यंजन मुगलकालीन जड़ों से जुड़े हैं और पारंपरिक रूप से बकरीद पर विशेष रूप से पसंद किए जाते हैं? इनमें शामिल हैं:

  • बिरयानी: कुर्बानी के जानवर के मांस से बना एक सुगंधित और स्वादिष्ट मिश्रित चावल का व्यंजन। यह भारत के लगभग हर हिस्से में थोड़े-बहुत स्थानीय बदलावों के साथ बनाया जाता है।
  • कोरमा: एक मसालेदार करी, जिसे आमतौर पर चावल या रोटी के साथ परोसा जाता है। यह विभिन्न प्रकार के मांस और मसालों के मिश्रण से तैयार होता है।
  • भुना कलेजी: स्वादिष्ट मसालों के साथ भुनी हुई या ग्रिल की हुई बकरे की कलेजी, जिसे आमतौर पर बकरीद की सुबह नाश्ते के रूप में परोसा जाता है।
  • इनके अलावा, सेवइयां, शीर खुरमा और विभिन्न प्रकार के कबाब भी इस अवसर पर घरों में बनाए और परोसे जाते हैं।

हर साल अलग तारीख: इस्लामी कैलेंडर और चाँद का दिखना

बकरीद का त्यौहार धु अल-हिज्जा के महीने की 10वीं तारीख को पड़ता है, जो इस्लामी कैलेंडर का 12वां और अंतिम महीना है। इस्लामी कैलेंडर चंद्र आधारित होता है, इसलिए पश्चिमी ग्रेगोरियन कैलेंडर की तुलना में यह हर साल लगभग 11 दिन पहले आता है।

बकरीद की तारीख का सटीक निर्धारण नए चाँद के दिखने पर निर्भर करता है, इसलिए इसकी भविष्यवाणी बहुत पहले से नहीं की जा सकती। इसके अतिरिक्त, भारत जैसे बहु-धार्मिक राष्ट्र में, बकरीद की तारीख को कभी-कभी किसी अन्य धर्म के प्रमुख त्यौहार के साथ टकराव से बचाने के लिए समायोजित भी किया जा सकता है। सही तारीख जानने के लिए, विश्वसनीय स्थानीय स्रोतों और सरकारी घोषणाओं पर नज़र रखना महत्वपूर्ण है।

ईद अल-अज़हा 2025 (बकरीद) कब है? (अनुमानित तिथि)

जैसा कि पहले बताया गया है, ईद अल-अज़हा की सटीक तारीख इस्लामी चंद्र कैलेंडर और नए चाँद के दिखने पर निर्भर करती है। इसलिए, इसकी घोषणा आमतौर पर त्यौहार से कुछ दिन पहले ही की जाती है।

हालांकि, खगोलीय गणनाओं के आधार पर, ईद अल-अज़हा 2025 (बकरीद) के शुक्रवार, 6 जून 2025 या शनिवार, 7 जून 2025 के आसपास पड़ने की संभावना है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह केवल एक अनुमानित तिथि है, और वास्तविक तिथि ज़ुल-हिज्जा महीने के चाँद के दिखने पर निर्भर करेगी।

भारत में, केंद्रीय रुयात-ए-हिलाल कमेटी (चाँद देखने वाली समिति) और विभिन्न राज्यों की हिलाल कमेटियाँ चाँद दिखने की पुष्टि करती हैं, जिसके बाद आधिकारिक तौर पर ईद की तारीख की घोषणा की जाती है। सरकार भी इसी घोषणा के आधार पर सार्वजनिक अवकाश तय करती है। इसलिए, ईद अल-अज़हा 2025 (बकरीद) की एकदम सही तारीख के लिए, त्यौहार के नज़दीक आने पर विश्वसनीय इस्लामी संगठनों, समाचार स्रोतों और सरकारी घोषणाओं पर नज़र रखना सबसे उचित होगा।

ईद अल-अज़हा, ईद उल-ज़ुहा, या बकरीद? विभिन्न नाम और उनके अर्थ

इस इस्लामिक त्यौहार के भारत में कई नाम प्रचलित हैं, जिनमें से प्रत्येक की एक अलग पृष्ठभूमि है। इन्हें आम तौर पर एक दूसरे के स्थान पर इस्तेमाल किया जा सकता है:

बकरीद: यह ‘बकरा ईद’ का संक्षिप्त रूप है, जिसका अनुवाद ‘बकरे का त्यौहार’ होता है। ‘बक्र’ या ‘बकरी’ उर्दू और हिंदी में बकरी के लिए शब्द है, जबकि ‘ईद’ अरबी शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है त्यौहार या पर्व।

ईद अल-अज़हा (Eid al-Adha): यह एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है ‘बलिदान का त्यौहार’। यह नाम पैगंबर इब्राहिम के बलिदान की घटना को संदर्भित करता है। ईद अल-अज़हा 2025 (बकरीद) इसी नाम से विश्व स्तर पर जाना जाता है।

ईद उल-ज़ुहा (Id ul-Zuha): यह भी अरबी मूल का है और इसका अर्थ भी ‘बलिदान का त्यौहार’ है।

अरबी और उर्दू दोनों की अपनी अनूठी लेखन प्रणालियाँ होने के कारण, लैटिन अक्षरों में वर्तनी में भिन्नताएँ देखी जा सकती हैं।

निष्कर्ष: आस्था, समुदाय और करुणा का पर्व

ईद अल-अज़हा 2025 (बकरीद) न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह गहरी आस्था, निःस्वार्थ बलिदान, अटूट समुदाय भावना और करुणा का प्रतीक भी है। यह त्यौहार हमें पैगंबर इब्राहिम की अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण की याद दिलाता है और हमें अपने जीवन में त्याग और दान के महत्व को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। यह एक ऐसा समय है जब मुस्लिम समुदाय एक साथ आता है, खुशियाँ बांटता है, और समाज के जरूरतमंद सदस्यों की मदद करता है। यह त्यौहार भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का एक अभिन्न अंग है, जो प्रेम, शांति और भाईचारे का संदेश देता है।

आप सभी को आने वाले ईद अल-अज़हा 2025 (बकरीद) की अग्रिम शुभकामनाएँ!

अगर आपको और इस्लामी त्योहारों के बारे में जानना है तो यहाँ देखें और हमें Instagram पर फॉलो करना न भूलें।